ना खुरान कि आयथे आती हॆं, ना गीता का श्लोक आतॆं हॆं
हमें तो बस गालिब के प्यार के दो शायरी आतॆ हॆं
लेकिन डर नहीं हॆं मुझे तेरी बदुंक की गोली से
क्योंकी मुझे ये भी पता हॆ की ना खुरान कि आयथें ना गीता का श्लोक तुझे समझ आतें हॆं
मॆं नहीं कोसता तेरी झझ्बातों को
क्योंकी हम मॆं से ही कोई हॆं वो खाफ़िर जीसने बीस साल की उम्र मॆं ही
किताबों के बदले बंदुक थमा दी तेरी हाथों में
और तेरी मसुमियत को नफ़रत में बदल दिया!
तुने किसी को मार दिया
तुझे किसी ने मार दिया
ना उनको अपनी जीन्दगी मीली
ना तुझे अपनी जन्नत मीली
बस नफ़रत फ़ॆलाने वालों के ईरादें बुल्लंद हो गए
और प्यार करने वालॊं को जीने का एक और मकसद मील गया!
Wrote this after the Dhaka Cafe attack on July 2nd 2016 which allegedly was carried out by boys of 20-21 years of age and who selectively killed foreigners who were not able to recite Quran.